
सीआरएस न्यूज सच के साथ बिहार संवादाता दिनेश कुमार बरनवाल
कोरोना काल में जिसके बगैर पड़े थे जान के लाले,अब काम निकल जाने पर क्यों फेंक दिया ‘कबाड़’ में ?
×××××××××××××××××××××××
कोरोना की पुनः दस्तक से स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही आज कितने मासूमों का जानलेवा होगा सिद्ध ।
+++++++++++++++++++++
नवादा ,04 जून : सम्पूर्ण देश में व खासकर नवादा में कोरोना जैसे अदृश्य दैत्य की पुर्नवापसी के बीच सदर अस्पताल की व्यवस्था काफी सवालों के घेरे में है। स्वास्थ्य विभाग ने सभी अस्पतालों को अलर्ट मोड पर रखा है। कई अस्पतालों में तो कोविड बेड आरक्षित किए गए हैं। डॉक्टरों की इमरजेंसी ड्यूटी लगाई गई है, लेकिन ठीक सदर अस्पताल नवादा में स्थिति पूर्णतः विपरीत है।
यहां जीवन रक्षक वेंटिलेटर सरकारी लापरवाही के पूर्ण शिकार होकर एक कोने में धूल फांक रहा है। पूर्व में बनाए गए कोविड वार्ड को अब दवाइयों और अन्य सामानों के स्टोर रूम में बदल दिया गया है।
2021 में कोरोना ने वेंटिलेटर की कमी के चलते कई मासूमों की जान ली थी,जो जगजाहिर है। फिर उसी भूल की पुनरावृति कहाँ तक उचित प्रतीत होता है ?
स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अस्पताल के सिविल सर्जन को भी कोविड वार्ड की वर्तमान स्थिति और आवश्यक उपकरणों की जानकारी नहीं है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी कोरोना से बचाव के लिए सक्रिय हो गए हैं।
सिविल सर्जन को जानकारी ही नहीं है तो कोरोना पर कैसे काबू पाया जा सकता है ? यह बेहद संगीन और बहुत ही चिंतनीय मामला है।
अस्पताल प्रशासन को स्वास्थ्य विभाग द्वारा आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। अन्य अस्पतालों ने गाइडलाइन के अनुसार तैयारियां पूरी कर ली हैं। अब देखना यह है कि सदर अस्पताल प्रबंधन कब इस स्थिति का संज्ञान लेता है। सिविल सर्जन विनोद कुमार चौधरी ने बताया कि व्यवस्था पूरी तरह दुरुस्त कर ली गई है। वेंटीलेटर के बारे में फिलहाल हमें अभी जानकारी नहीं है। इसके बारे में आगे आप लोगों को बताएंगे।
कभी वेंटिलेटर के लिए पड़े थे जान के लाले। कितने मासूमों को अपने बहुमूल्य जीवन से असामयिक हाथ धोना पड़ा था। भारी खामियाजा व फजीहत कितने निरीह मासूमों के उठाना पड़ा है। इतिहास भी इसका प्रत्यक्ष गवाह व प्रमाण है।
2021 में कोविड 19 की दूसरी लहर में न जाने कितने लोगों की जान चली गई। उस वक्त वेंटिलेटर की कमी के चलते कोरोना वायरस ने कोहराम मचा दिया था। अस्पतालों में वेंटिलेकर की कमी जिस तरह से उस वक्त महसूस की गई थी, उसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। लेकिन मुसीबत के थोड़ा टलते ही ऐसी लापरवाही देखने को मिल रही है,जो अमानवीय व जनविरोधी घोर काली करतूत एवं क्रूर व्यवहार है।
* रिपोर्ट : – दिनेश बरनवाल