Homeजीवन मंत्रभारतीय मीडिया की गिरती साख का जिम्मेदार कौन।

भारतीय मीडिया की गिरती साख का जिम्मेदार कौन।

इंद्र यादव ,भदोही

भारत में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, जिसका कार्य सरकार और समाज के बीच एक निष्पक्ष और पारदर्शी सेतु बनाना है। हालांकि, हाल के दशकों में भारतीय मीडिया पर भ्रष्टाचार के आरोप बढ़े हैं, जिसने इसकी विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं।

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भारतीय मीडिया में भ्रष्टाचार कई रूपों में सामने आता है यह सबसे गंभीर और व्यापक समस्या है। कई बार राजनेता, कॉरपोरेट कंपनियां और प्रभावशाली व्यक्ति अखबारों या टीवी चैनलों पर खबरें, लेख या फीचर छपवाने के लिए पैसे देते हैं। यह प्रथा न केवल पत्रकारिता की निष्पक्षता को नष्ट करती है, बल्कि जनता को भ्रामक जानकारी भी देती है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और नीरा राडिया प्रकरण जैसे मामलों ने इस समस्या को उजागर किया।कई मीडिया हाउसों पर कॉरपोरेट या राजनीतिक दबाव होता है, जिसके कारण संपादक और पत्रकार अपनी स्वतंत्रता खो देते हैं। समाचारों को तोड़-मरोड़ कर या चुनिंदा रूप से प्रस्तुत किया जाता है ताकि किसी विशेष विचारधारा या हित को बढ़ावा मिले। वंही छोटे और मझोले स्तर के मीडिया हाउसों में पत्रकारों को अक्सर कम वेतन और असुरक्षित नौकरी की स्थिति का सामना करना पड़ता है। इससे कुछ पत्रकार रिश्वतखोरी या “खबर की दलाली” जैसे अनैतिक कार्यों में शामिल हो जाते हैं।टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग पॉइंट) और सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए कई मीडिया हाउस सनसनीखेज और गैर-जरूरी खबरों को बढ़ावा देते हैं। इससे न केवल तथ्यों की अनदेखी होती है, बल्कि समाज में भय और भ्रम का माहौल भी बनता है। विज्ञापनदाता और कंपनियां सोशल मीडिया प्रभावितों और मशहूर हस्तियों के माध्यम से भ्रामक प्रचार करती हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंकुश लगाने के लिए विज्ञापनदाताओं को स्व-घोषणा देने का आदेश दिया है।मीडिया में भ्रष्टाचार के कई कारण हैं,आजादी के बाद कई बड़े समाचार पत्र और मीडिया हाउस पूंजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों के नियंत्रण में आ गए। इनका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है, जिसके लिए वे अक्सर सत्ता या प्रभावशाली लोगों के हितों को प्राथमिकता देते हैं। भारतीय प्रेस परिषद और न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी जैसे निकायों को पर्याप्त अधिकार और प्रभाव नहीं है। ये संस्थाएं भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लगा पातीं तो वंही छोटे शहरों और कस्बों में पत्रकारों को न्यूनतम वेतन और असुरक्षित नौकरी की स्थिति का सामना करना पड़ता है। इससे वे अनैतिक प्रथाओं की ओर आकर्षित होते हैं। मीडिया को अब “न्यूज बिजनेस” कहा जाने लगा है, जहां समाचारों का चयन और प्रस्तुति विज्ञापनदाताओं और टीआरपी के आधार पर होती है।मीडिया में भ्रष्टाचार के गंभीर परिणाम हैं,निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र की रीढ़ है। भ्रष्ट मीडिया जनता को गलत सूचनाएं देता है, जिससे लोग सूचित निर्णय नहीं ले पाते। ऐसे में जनता का मीडिया पर भरोसा कम हो रहा है, जिससे समाज में सूचना के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है। सनसनीखेज और पक्षपातपूर्ण खबरें समाज में तनाव और विभाजन को बढ़ावा देती हैं। वंही दूसरी तरफ जो पत्रकार भ्रष्टाचार या सत्ता के खिलाफ लिखते हैं, उन्हें धमकियां और मुकदमों का सामना करना पड़ता है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में भारत 161वें स्थान पर है, जो पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया स्वतंत्रता की खराब स्थिति को दर्शाता है।
ऐसे में सरकार को चाहिए कि भारतीय प्रेस परिषद और अन्य नियामक निकायों को अधिक स्वायत्तता और अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि वे पेड न्यूज और भ्रामक विज्ञापनों पर प्रभावी नियंत्रण लगा सकें। पत्रकारों को उचित वेतन और नौकरी की सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे अनैतिक प्रथाओं से बच सकें।
मीडिया हाउसों को आंतरिक स्तर पर नैतिक पत्रकारिता के लिए दिशानिर्देश लागू करने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश, जिसमें विज्ञापनदाताओं को स्व-घोषणा की आवश्यकता है, एक सकारात्मक कदम है। जनता को मीडिया साक्षरता के प्रति जागरूक करना होगा ताकि वे भ्रामक खबरों और प्रचार से बच सकें। मीडिया हाउसों को अपने वित्तीय स्रोतों और विज्ञापन नीतियों को पारदर्शी बनाना चाहिए।भारतीय मीडिया का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक युग तक गौरवपूर्ण रहा है, लेकिन आज यह भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोपों से जूझ रहा है। यदि मीडिया को लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी बनना है, तो उसे अपनी निष्पक्षता और विश्वसनीयता को पुनः स्थापित करना होगा। सरकार, नियामक संस्थाओं, मीडिया हाउसों और जनता को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि भारत में एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और जिम्मेदार मीडिया का निर्माण हो सके।

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